21वीं शताब्दी की शुरुआत से ही भारत में बढता प्रदूषण और घटता
लिंगानुपात एक बहस व चिंता का विषय रहा है। जिसपर आए दिन कभी मंथन सभा तो कभी
राज्यों व केंद्र सरकारों द्वारा नई-नई योजनाएं लाई जाती हैं जिन पर करोड़ों खर्च
करके भी परिणाम शून्य ही रहता है। ऐसे में देश का एक गांव ऐसा है जिसने प्रकृति और
बेटियों से ऐसा नाता जोड़ा, जिसने इस गांव को आदर्श गांव की संज्ञा दे डाली।
पिपलांत्री गांव देश की राजधानी दिल्ली से करीब 600 किलोमीटर दूर राजस्थान में
स्थित है। जहां हर ओर सिर्फ हरियाली और शांति ही देखने को मिलती है। न तो यहां
किसी को बेटों की चाह है और ना ही यह आधुनिकता की अंधी दौड़ में शामिल है। इस बात
की गवाही गांव की गलियां और सड़कें खुद देती हैं।
राजस्थान के इस
गांव के लोग बेटी के जन्म लेने पर 111 पेड़ लगाकर बेटियों के साथ-साथ पर्यावरण रक्षा की अनोखी मिसाल पेश
कर रहे हैं। खास बात यह है कि गांव के लोग सिर्फ बेटियों के जन्म पर ही नहीं बल्कि
किसी व्यक्ति की मृत्यू पर भी उसकी याद में 11 पेड़ लगाते हैं। आज जहां इस 5000 की
आबादी वाले गांव में कुल 2 लाख 80,000 पेड़ पौधें हैं वहीं 2011 के आंकड़ों के
अनुसार पिपलांत्री गांव का लिंगानुपात 990:1000 हैं। गांव की बेटियां रक्षा बंधन के दिन पेड़ों को राखी
बांधती हैं। इस गांव की
कहानी लोगों के संकल्प और साहस की है, जिनके प्रयासों से बालिका भ्रूण हत्या और बाल विवाह के लिए चर्चित
राज्य में बेटियों को जीवनदान मिला और पेड़-पौधे के लिए तरसता एक बंजर-पथरीला
इलाका हरित क्षेत्र में बदल गया। हालांकि यह इलाका संगमरमर की खदानों के लिए मशहूर
है, मगर बेटियों और पर्यावरण बचाने के अभियान ने इस गांव को नई पहचान दी है।
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एक परिवार बच्ची के जन्म पर पेड़ लगाता हुआ |
इस गांव में
सिर्फ बच्चियों के पैदा होने पर ही ज़ोर नहीं दिया जाता बल्कि उन्हें एक बहतर भविष्य
मिले यह सुनिश्चित भी किया जाता है। पूरे गांव में जब भी किसी परिवार में बेटी
पैदा होती है तो गांव के लोग समुदाय के रूप में एक जगह जमा होते हैं और हर नवजात
बालिका शिशु के जन्म पर पेड़ लगाने का कार्यक्रम होता है। इसके साथ ही बेटी के
बेहतर भविष्य के लिए गांव के लोग आपस में चंदा इकट्ठा कर 21,000 रुपये जमा करते
हैं। इसमें 10,000 रुपये लड़की के माता-पिता से लिए जाते हैं। 31,000 रुपये की यह
राशि लड़की के नाम से 20 वर्ष के लिए बैंक में फिक्स कर दी जाती है। गांव की पंचायत द्वारा
लड़की के अभिभावक को एक शपथपत्र पर हस्ताक्षर करके देना होता है, जिसके अनुसार माता-पिता
द्वारा बिटिया की समुचित शिक्षा का प्रबंध किया जायेगा। उसमें यह भी लिखना होता है
कि 18 वर्ष की उम्र
होने पर ही बेटी का विवाह किया जायेगा। परिवार का कोई भी व्यक्ति बालिका भ्रूण
हत्या में शामिल नहीं होगा और जन्म के बाद जो पौधे लगाये गये हैं उनकी देखभाल का जिम्मा भी उसी
परिवार पर रहेगा। हालांकि पेड़ों की देखभाल की जिम्मेदारी सिर्फ लड़की के अभिभावकों
को ही नहीं दी जाती, बल्कि पूरा समुदाय इन पेड़ों की देखरेख करता है। गांव के लोग
सिर्फ पेड़ों की देखभाल ही नहीं करते बल्कि इनकी रक्षा भी करते हैं। वह पेड़ को
दीमक से बचाने के लिए पेड़ के चारों तरफ घृतकुमारी(एलोवीरा) का पौधा लगाते हैं। यह
पेड़ और घृतकुमारी के पौधे गांववालों की आजीविका के स्रोत भी हैं। इस गांव के
ज्यादातर परिवारों का जीवन यापन इन पेड़ पौधों से ही होता है।
सरपंच की सोच
का नतीजा
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गांव की बेटियों पेड़ों को राखी बांधते हुए |
हालांकि हमेशा
से इस गांव की यह परंपरा नहीं रही है। इसकी शुरुआत गांव के पूर्व सरपंच श्यामसुंदर
पालीवाल ने की थी। श्यामसुंदर पालीवाल का इस परंपरा को शुरु करने का कारण उनकी कम
उम्र की बेटी का गुजर जाना था। जिसका उन्हें गहरा सदमा लगा था लेकिन अपनी बेटी के
गुजरने के बाद उन्होंने कुछ अनोखा करने की ठानी जिससे पूरा गांव उनकी बेटी को
हमेशा याद रखे। उन्होंने इस परंपरा को वर्ष 2006 में शुरू किया था जो आज भी कायम है। अब तक इस गांव में लाखों पेड़
लगाये जा चुके हैं और इस गांव की बेटियां पढ लिखकर गांव का नाम रोशन कर रही हैं। इस
गांव की एक खास बात यह भी है कि पिछले सात-आठ वर्षों में इस गांव से पुलिस में एक
भी मामला दर्ज नहीं हुआ है।
पिपलांत्री
गांव गढ रहा विकास के नए आयाम
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राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे पिपलांत्री गांव के सरपंच
श्यामसुंदर पालीवाल के साथ पौधारोपण करते हुए.. |
वर्ष 2007 में पिपलांत्री गांव को उसकी पर्यावरण नीति, स्वस्छता,
निर्मलता के चलते राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत किया गया था। इस गांव की सड़क
महानगरों से ज्यादा साफ सुथरी हैं। हर घर में टॉयलेट, पीने योग्य पानी, बिजली व बच्चों के
लिए शिक्षा की सुविधा उपलब्ध है। लेकिन 2004 से पहले ऐसा नहीं था। इस गांव की
कायापलटी तब होनी शुरु हुई जब 2 फरवरी 2004 को श्याम सुंदर पालीवाल को इस गांव का
सरपंच चुना गया। जिन्होंने पारदर्शिता व जन सहभागिता के साथ काम किया। उन्हीं की
नीतियों के आधार पर गांव की कार्य योजना आज भी जनता व जन प्रतिनिधियों के द्वारा
मिलकर तैयार की जाती है व योजनाओं को संचालित करने में दोनों की बराबर भोगीदारी
होती है।
गांव के सरपंच बनने के साथ ही सर्वप्रथम श्याम सुंदर पालीवाल ने
सबसे पहले ग्राम पंचायत के सहयोग से सांझ ढलने के रात्रि तक "पंचायक आपके द्वार"
कार्यक्रम चलाया तथा पंचायतवासियों की समस्याओं को उनके गांव चौपाल पर जाकर सुना,
समझा व जहां तक हो सका इनका शीघ्र निस्तारण किया गया।
पंचायत आपके द्वारा कार्यक्रम के तहत ही यह बात
निकलकर सामने आई की पिपलांत्री गांव में शिक्षा, पीने योग्य पानी, विद्युत, गंदगी,
बीमारियों आदि की गंभीर समस्या है साथ ही गांव में सड़कों व पक्के रास्तों की बेहद
कमी थी।
ऐसे में पंचायत ने सोच विचार करने से बहतर काम
करने पर बल दिया। सरपंच व पंचायत के सहयोग से सबसे पहले सेक्टर रिफोर्म एवं
स्वजलधारा योजना शुरु की गई। जिसमें जनभागीदारी को बढाने के लिए 11 पेयजल योजनाएं
स्वीकृत कर ग्राम जल एवं स्वच्छता समीतियों का गठन किया गया व सम्पूर्ण पंचायत में
पेयजल संकट को हमेशा के लिए दूर किया गया।
पेयजल के बाद गांव की सबसे बड़ी समस्या बिजली व
गंदगी की थी। गंदगी की समस्या ऐसी थी जिसे गांवावालों के सहयोग के बिना कभी दूर
नहीं किया जा सकता है। ऐसे में गांव को स्वच्छ बनाने हेतु सर्वप्रथम सरपंच, पंचायत
सदस्यों व अन्य अधिकारियों ने गांव के प्रबुद्ध ग्रामवासियों को साथ लेकर स्वयं
साफ-सफाई का कार्य प्रारंभ किया। इसी के तहत सभी चौराहों पर कचरा पात्र रखवाए गए, सार्वजनिक
जगहों व विद्यालयों तथा आंगनवाड़ी केंद्रों में सुलभ शौचालयों का निर्माण करवाया
गया। गांव की नियमित सफाई एवं स्वच्छता हेतु इस कार्य का दायित्व गांव जल एवं
स्वच्छता समीतियों को सौंपा गया।
गांव को रोशन करना ग्राम पंचायत के लिए सबसे बड़ी
चुनौति थी क्योंकि इसके लिए बजट एक बहुत बड़ी चुनौति थी जिसके लिए पंचायत सरकार पर
निर्भर थी। ऐसे में पंचायत ने इसका एक अनूठा समाधान निकाला। सबसे ग्राम पंचायत ने
ग्रामीणों को विश्वास दिलाया कि वह उनका पैसे उनके विकास के लिए ही खर्च करेगी और
गांव को रोशन करेगी। हालांकि शुरुआत में गांववालों ने पंचायत पर विश्वास नहीं किया
लेकिन धीरे-धीरे जब पंचायत के सदस्यों ने घर-घर जाकर अपनी बात लोगों तक पहुंचाई तो
उनका भरोसा पंचायत पर बढने लगा। जिसके बाद गलियों और रास्तों में कम वोल्टेज की
ज्यादा रोशनी करने वाली लाइटें लगाई गई। इन लाइटों को लगाने का खर्चा पंचायत ने
किया और जिन घरों के आगे यह लाइटें रोशनी करती है उनके गृहस्वामियों ने इसके बिजली
का खर्च स्वयं उठाया। पंचायत का यह प्रयोग अदभुत रूप से सफल रहा। पंचायत के इस तरह
के कार्यों से लोगों का भरोसा पंचायत में बढने लगा जिसके बाद गांव के मुख्य
मार्गों को आपसी बातचीत व समझ से ग्रामवासियों का सहयोग लेकर अतिक्रमण मुक्ता कर,
चौड़ा किया गया, सड़के व सीमेंट कंक्रीट रोड़ों के साथ पक्की नालियों का निर्माण
किया गया।
आमजन में स्वच्छता संबंधी जागृति लाने के लिए
विद्यालयों में अध्यापकों ने बच्चों को स्वच्छता के बारे में शिक्षित किया, नारों
व रैलियों के साथ स्थानीय लोक कलाकारों द्वारा गांव-गांव में जनसम्पर्क अभियान
चलाया गया। घर की सफाई, व्यक्तिगत स्वच्छता, पेयजल का रख रखाव डण्डीदार लाठों का
प्रयोग, भोजन करने से पहले एवं शोच के पश्चात साबुन से हाथ धोने, शिशुओं की देखभाल
को लेकर कई जनसंपर्क अभियान चलाए गए। गांव में टीकाकरण का जिम्मा ए.एन.एम
आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं व साक्षरता प्रेरकों ने उठाया। पंचायत के युवाओं व महिलाओं
को आत्मनिर्भर बनाने के लिए विभिन्न स्वयंसंवी संस्थाओं के माध्यम से रोजगार
प्रशिक्षण शिविर, गृह उद्योग प्रशिक्षण कार्यक्रम आदि विविध शिविरों का आयोजन किया
गया।
गांव
में जागरूकता को हर घर में पहुंचाने के लिए ग्राम पंचायत के 11 वार्डपंचों व
समस्ता 103 कर्मचारियों ने गांव में घरों को आपस में बांटकर जनसंपर्क अभियान चलाया।
जिसके बाद दिन बीतने के साथ गांव में अभूतपूर्व परिवर्तन देखने को मिले। धीरे-धीरे
गांव स्वच्छ हुआ, रात के समय चमकने लगा, शिक्षा का स्तर बेहतर होने लगा। जिसके बाद
पंचायत ने 15 अगस्त 2006 को निर्मल ग्राम पुरस्कार हेतु आवेदन किया। जिसपर केंद्र
सरकार के नियुक्त पर्यवेक्षकों द्वारा विस्तृत सर्वेक्षण किया गया और सभी पैमानों
पर गांव को नापने के बाद 4 मई 2007 को राष्ट्रपति ए.पी.जे अब्दुल कलाम द्वारा
ग्राम पंचयात पपिलांत्री को राष्ट्रपति पुरस्कार द्वारा सम्मानित किया गया।
देश के सबसे
विकसित गांव में से एक
पिपलांत्री
गांव आज देश के सबसे विकसित गांवों में से एक है। इस गांव की पूरी जानकारी अंग्रजी
व हिंदी भाषा में वेबसाइट पर उपलब्ध है। इस वेबसाइट में पंचायत में चल रहे विकास
कार्यक्रमों का जिक्र है और भविष्य की विकास योजनाओं के बारे में जानकारी भी गई है।
इस गांव में कार्य करने वाली पंचायत के पारदर्शिता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा
सकता है कि गांव से जुड़ी सभी जानकारियां, मसलन अभी तक गांव में कितने ट्रांसफरमर लगे हैं, किस गांव में
कितने लोगों के पास बिजली का कनेक्शन है, किन गांवों में आंगनबाड़ी का काम चल रहा है, कहां-कहां
अस्पताल और आयुर्वेदिक औषधालय हैं, कितनी नर्से काम कर रही हैं, कितने टय़ूबवेल हैं, कितने हैंडपंप हैं, प्राथमिक- माध्यमिक और उच्च विद्यालय कहां-कहां हैं और कितनी
संख्या में शिक्षक उपलब्ध हैं, जंगलों की क्या स्थिति है, जलछाजन के लिए क्या काम हो रहा है आदि पूरी जानकारी गांव की
वेबसाइट पर उपलब्ध है।
आज एक ओर जहां देश के गांव अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं
ऐसे में पिपलांत्री गांव व गांव की पंचायत एक प्रेरणा की तरह है। यह न सिर्फ
बेटियां बचाने, पेड़ लगाने की
राह दिखाता है, बल्कि पंचायत स्तर
पर जरूरी सूचनाओं का संग्रहण करना भी सिखाता है। आज पूरे प्रदेश में पिपलांत्री
मॉडल लागू करने की तैयारी हो रही है, राष्ट्रपति से लेकर मुख्यमंत्री भी इस गांव के
कायल है। इसी की बानगी है कि बीते महीनों प्रदेश के 33 जिलों के 175 आईएएस और
आरएएस अफसर गांव में यह देखने गए थे कि कैसे पिपलांत्री जैसे सामान्य गांव को
निर्मल और आदर्श गांव के रूप में देशभर में पहचान दिला सकते हैं। उन्होंने गांव
में एक दिन की कार्यशाला में यह भी सीखा कि कैसे नरेगा के बजट का उपयोग कर और
जनभागिता से शौचालय, सब सिटी सेंटर, स्कूल भवन, सड़क, चारागाह विकास और पर्यावरण
को बढावा दिया जा सकता है। सिर्फ यही नहीं भविष्य में इस गांव की केस स्टडी को डेनमार्क
के प्राइमरी और मिडिल स्कूल में पढ़ाया जाएगा।
आज यह गांव "जहां चाह, वहां
राह" की पंक्तियों
को धरातल पर उतारता है और देश के सभी गांवों ही नहीं शहरों को भी यह सिखाता है कि
वह किस प्रकार आपसी सहयोग से अपनी समस्याओं को स्वयं हल कर सकते हैं।